



मनरेगा नहीं, धनरेगा केन्द्र सरकार की एक अति महत्वाकांक्षी योजना जो कि गाँवों के उन गरीबों व असहायों के लिए चलायी जा रही है जिन्हें घर व गाँव छोड़कर रोजी-रोटी के लिए सुदूर किसी शहर में जाना पड़ता है । गाँव के इन जरूरतमन्दों को शहर न जाना पड़े और गाँव में ही काम मिल जाये, यही सोचकर यह योजना नरेगा जिसे अब मनरेगा के नाम से जाना जाता है, केन्द्र सरकार ने महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार को बड़े ही कुशलता के साथ चलाने का संकल्प लिया, लेकिन मनरेगा राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर जनपद में धनरेगा बन गयी है । बात अगर सिर्फ जमओं ब्लाक की करें तो कोई ऐसा आदर्श तालाब किसी भी ग्राम सभा में नहीं बना जिसे हम आदर्श कह सकें, आदर्श की मिसाल कायम करने के लिए जो भी मानक दिये गये हैं, उनकी परवाह न करते हुए पहले से ही बड़े गड्ढे का रूप पाये उन जगहों को आदर्श तालाब बनाने का प्रयास किया गया है, जो कि पचास प्रतिशत पहले ही तालाब को कुछ परिश्रम करवाकर मनरेगा का धनरेगा करके कागजों पर पूरे मानक के साथ आदर्श तालाब बनवाये जा रहे हैं या बन गये हैं । जिम्मेदार पदों पर बैठे कुछ चन्द लोग जिसे प्रदेश व गाँवों के विकास का जिम्मा दिया गया । जिन्हें हम विकास की रीढ़ भी कह सकते हैं ये चन्द लोग अपने-अपने कमीशन के चक्कर में मनरेगा का धनरेगा करवाने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं । प्रधानों का कार्यकाल कहिए जनाब
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